श्री दर्शन महाविद्यालय
बद्रीनाथ की ओर प्रस्थान करत हए महाराज श्री जब १९०४ म मनन की रती म वटवक्ष क नीच रापि को र्र्न कर रहे थे तो उन्होंने एक स्वप्न देखा कक वे कुछ बालकों को लेकर पवद्यालर् चला रहे हैं। इसी स्वप्न से पवद्यालर् की स्थापना का बीजााँकुर प्रस्फु कटत हो चुका था। स्वामी जी स्वप्न को संकल्प रूप में पररण्णत कर उसको साकार करने का दृढ़ ननश्चर् कर नलर्ा था। तपस्र्ा के उपरांत सन १९१० में महाराज श्री राघवाचार्श जी पुनः उसी स्थान मुनन की रेती में वापस लौट कर गंगा तट पर तप करने लगे तथा पूवश स्वप्न संकल्प को मूतश रूप देने, सनातन एवं वैकदक ज्ञान की रक्षा, प्रचार प ् रसार एवं संरक्षण-संवधशन हेतु गहन नचंतन में लग गर्े।
प्रधानाचार्य संदेश
डॉ राधामोहन दास
ऋषि मुनियों के तपों से पवित्र किया हुआ पर्वतों के राजा हिमालय के तलहटी में, कल-कल ध्वानि से अखण्ड गतिशील पिघली हुई बरफ की निर्मल जल धारा से परिपूर्ण परम पावनी माँ भागिरथी जी के नैकत्य तट पर तथा खिली हुयी विभिन्न फुलों के सुगन्ध मिश्रित मन्द-मन्द प्रवाहित वायु प्राकृतिक सौन्दर्य से सुशोभित, विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल रामझूला के समीप रिथित श्री दर्शनमहाविद्याल के प्रथम सेवक होने के कारण सभी संस्कृत अनुरागियों, संस्कृतज्ञ, प्रशासनिक अधिकारियों, प्रबन्धतन्त्र, शिक्षक, कर्ममारी, अभिभावक एवं प्रिय छात्र आप सभी को हृदय से अभिनन्दन करते हुये मैं अपने को धन्य अनुभव करता हूँ |
धर पुराण-इतिहास, दर्शनादि शास्त्रों का संरक्षण-सम्वर््धन प्रचार-प्रसार तथा भारतीय सनातन संस्कृति परम्परा को आगे बढाने एवे ज्ञानपीपासु छात्रों के व्यक्तित्व विकास के लिए प्रात: स्मरणीय योगिराज १008 श्री राघवाचार्य महाराज जी के द्वारा 499 ई0 सन् में श्री दर्शन महाविद्यालय स्थापित किया गया है। प्रथमा प्रथम से उत्तर मध्यमा द्वितीय पर्यन्त (कक्षा 6 से 42 तक) कक्षाओं की सम्बद्धता उत्तराखण्ड संस्कृत शिक्षा परिषद् तथा शास्त्री और आचार्य कक्षाओं की सम्बद्धता उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय से है |