ट्रस्ट के बारे में-

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कॉलेज ट्रस्ट के बारे में

महाराज श्री के द्वारा स्थापित किए जाने के पश्चात श्री दर्शन महाविद्यालय ट्रस्ट निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर है। ट्रस्ट के प्रथम अध्यक्ष स्वयं वैकुंठ वासी १००८ स्वामी श्री राघवाचार्य जी महाराज रहे, उनके वैकुंठ गमन दिनांक १२ दिसम्बर १९७० के पश्चात कुछ कालखण्ड तक दिव्य जीवन संघ के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद जी महाराज ने भी विद्यालय के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। तत्पश्चात्‌ स्वामी राघावाचार्य जी के परम शिष्य विद्यालय के तत्कालीन प्रधानाचार्य परम वैष्णव संत के रूप में जीवन व्यतीत करने वाले श्री पुण्डरीकाक्षाचार्य जी को दिव्य जीवन संघ के तत्कालीन अध्यक्ष स्वामी श्री चिदानंद जी महाराज ने नगर के प्रतिष्ठित संत-महात्माओं के साथ मित्रकर विधिवत पट्टाभिषेक करते हुए विद्यालय के अध्यक्ष के रूप में प्रतिस्थापित किया, श्री पुण्डरीकाक्षाचार्य जी ने सन ६८ वर्ष की आयु ६ अप्रैल १९८१ तक विद्यालय के अध्यक्ष पद को सुशोभित करते हुए विद्यालय को उन्नति प्रदान की।

श्री पुण्डरीकाक्षाचार्य जी के वैकुण्ठ गमन के पश्चात स्वतंत्रता संग्राम व उत्तराखंड स्वाधीनता आंदोलन का नेतृत्व करने वाले महान सामाजिक कार्यकर्ता एवं गांधीवादी विचार धारा वाले विद्वान श्री पूज्य धनेश शास्त्री जी ने ७ अप्रैल १९८१ को सनातन धर्म की रक्षा हेतु विद्यालय के अध्यक्ष पद सुशोभित किया, इनके अध्यक्षीय कार्यकाल में विद्यालय ने उन्नति के नवीन शिखरों को प्राप्त किया। श्री शास्त्री जी ने अपने कार्यकाल में विभिन्‍न गणमान्यों एवं संस्थाओं से सहयोग प्राप्त कर विद्यालय के लिए कक्षों एवं भवनों का निर्माण कार्य सम्पन्न किया।साथ ही उन्होंने तत्कालीन सांसद मनोहर कान्त ध्यानी जी के सहयोग से अतिथि आवास का भी निर्माण संम्पन्न करवाया। अध्यक्ष के रूप में विद्यालय को उन्नति प्रदान करते हुए १६ अप्रैल २००१ को श्री शास्त्री जी का वैकुण्ठ धाम गमन हो गया। तदुपरांत जो कि विद्यालय के प्रबंधक पद को सुशोभित कर रहे थे प्रख्यात सन्‍त भागवत प्रवक्ता एवं रामचरितमानस के मर्मज्ञ परम वैष्णव राघवाचार्य जी के आत्मीय शिष्य श्री गोपालाचार्य जी को १७ अप्रैल २००१ को अध्यक्ष पद की बागडोर सौंपी गई।

संत गोपालाचार्य जी ने भी पूर्व अध्यक्षों की भाँति विद्यालय को निरन्तर उन्नति प्रदान की। इन्होंने विद्यालय की उन्नति के लिए देश के विभिन्‍न स्थानों पर रह रहे अपने गुरु श्री राघवाचार्य जी के अनेक शिष्यों को विद्यालय के संरक्षक के रूप में आर्थिक सहयोग के लिए आमंत्रित किया। आमन्त्रित गणमान्यों ने अपने-अपने सामर्थ्यानुसार अन्न, वस्त्र, आर्थिक आदि के रूप में विद्यालय को सहयोग प्रदान करते हुये आनंद की अनुभूति प्रास॒ की। श्री गोपालाचार्य जी ने विद्यालय के अध्यक्ष पद पर सुचारु रूप से निर्वहन करते हुए १० अगस्त २०१७ को अपनी इहलौंकिक लीला समेट कर बैकुण्ठधाम को प्राप्त किया। इनके परमधाम गमन के पश्चात ११ अगस्त २०१७ से ट्रस्ट के उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत संस्कृत भाषा के विद्वान शिक्षाविद आचार्य वंशीधर पोखरियात्र जी ने संस्कृत एवं संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन हेतु विद्यालय के अध्यक्ष पद को सम्भालना आरम्भ किया।